Bechne Ka Sabse Alag Tareeka Book

Bechne Ka Sabse Alag Tareeka

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A LIFE ON OUR PLANET BOOK IN HINDI

A LIFE ON OUR PLANET



David Attenborought

इंट्रोडक्शन 


Pripyat (प्रिप्यात) यूक्रेन का एक शहर है जिसे सोवियट यूनियन ने बनाया था। एक समय यहाँ 50,000 इंजीनियर और साइंटिस्ट रहा करते थे, जो उस समय रसिया के सबसे तेज़ दिमाग वाले  लोग थे। आज Pripyat में कई  बिल्डिंग और अपार्टमेंट तो हैं, लेकिन  सभी खाली पड़े हैं।


Pripyat, Chernobyl न्यूक्लियर पावर प्लांट के पास बसा हुआ था। 1986 में यहां एक रिएक्टर फट गया था, जिसके कारण  Pripyat में  रहने वाले लोगों की जान चली गई थी। वह रिएक्टर डिजाइन में fault और पावर प्लांट को गलत तरीके से ऑपरेट करने के कारण फटा था।


उन साइंटिस्ट्स और इंजीनियर्स को, जो Pripyat में रहते थे, इसका अंदाज़ा पहले से ही हो जाना चाहिए था। आखिरकार उनमें से ज्यादातर Chernobyl के लिए काम करते थे, लेकिन इसके बजाय वह अपनी सैलरी और कम्फ़र्टेबल जिंदगी के कारण अंधे हो चुके थे। जब यह हादसा  हुआ तो सब चौंक गए। जबकि असल में, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता था।


हम भी Pripyat के लोगों की तरह हैं। हम एक इंटेलिजेंट सोसाइटी हैं जो भयानक तबाही  के कगार पर खड़ा है, लेकिन हम इसके बारे में कुछ नहीं कर रहे हैं। यहां तबाही का मतलब न्यूक्लियर पावर से होने वाली बर्बादी नहीं है। यहां पर खतरा हमारे नेचुरल एनवायरमेंट के बर्बाद होने से है।


इस समरी में आप जानेंगे  कि कैसे इंसान ने पिछली सेंचुरी में एनवायरमेंट को गलत तरीके से इस्तेमाल किया है। हमने ज़मीन, हवा और समुद्र से लेकर जंगल और वहाँ  रहने वाले जानवरों तक, सब कुछ बर्बाद कर दिया है।


आप 9 बाउंड्री के  मॉडल के बारे में भी सीखेंगे। हम नेचर के साथ कैसे कनेक्ट या इंटरैक्ट करते हैं, यह मेथड उसे एनालाइज करता है। 9 बाउंड्रीज मॉडल फॉलो करना हमें एनवायरनमेंट को बचाने के साथ-साथ  एक स्टेबल सोसाइटी बनाए रखने  में मदद करेगा।


आखिर में यह समरी यह पता लगाएगी कि हमने जो नुकसान किया  है हम उसे किस तरह से रिवर्स यानी  पलट सकते हैं। यह आसान नहीं होगा, लेकिन अगर हम कुछ खास एरियाज़ पर फोकस करें, तो ऐसा  किया  जा सकता है। शुरुआत में इसमें एनर्जी प्रोडक्शन और फूड प्रोडक्शन शामिल हैं।


इंसान का इस पूरे यूनिवर्स में सिर्फ एक ही घर है वह है अर्थ यानी हमारी  पृथ्वी, लेकिन फिर भी हमने इसके एनवायरमेंट को पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया है और अब भी इसे  नुकसान पहुँचाते जा रहे हैं। यह समरी हमें हमारी  सबसे बड़ी गलतियों के बारे में बताएगी और यह पता लगाने में मदद करेगी  कि हम इसे ठीक  करने के लिए क्या कर सकते हैं।

 

Part One: My Witness Statement

1937


1937 में इंसानों की आबादी 2.3 बिलियन थी। ज़मीन का 66% हिस्सा  जंगल और वहाँ रहने वाले जानवरों से भरा था। atmosphere में कार्बन की मात्रा  280 per मिलियन  था।


उस समय इस बुक के ऑथर  डेविड Attenborough 11 साल के थे। कम उम्र से ही उन्हें प्रकृति  को एक्सप्लोर करना पसंद था। वह पत्थरों में फॉसिल्स खोजने के लिए  अपनी साइकल से Eastern Leicester जाया करते थे। उन्हें जो नई नई चीजें मिलीं, उन्होंने उनके अंदर यह जानने की इच्छा भी बढ़ाई कि नेचर कैसे काम करता है।


आप अपने आसपास जितने भी जिंदा चीजों को देखते हैं वह सब एवोल्यूशन नाम के प्रोसेस से हुआ है। सालों से जीवों ने एनवायरमेंट के बहुत से challenges  का सामना किया है। सिर्फ वही जीव  अपनी आबादी बढ़ा पाए  जो ज़िन्दा  बच पाए थे। इसलिए उनके कैरेक्टरिस्टिक्स यानी विशेषताएँ  बच पाई, जबकि बाकियों की ख़त्म हो  गई।


लेकिन धीरे-धीरे  होने वाले एवोल्यूशन के  प्रोसेस में  कई बार बाद-बड़ी बाधाएँ आई। पृथ्वी लगभग 4 बिलीयन सालों से मौजूद है और उस दौरान पांच बार कई प्रजातियाँ यानी स्पीशीज पूरी तरह से ख़त्म हो गई थीं। यह ऐसी सिचुएशन है जहां हजारों जीव बहुत कम समय के अंदर मर जाते हैं। इसके कारण उस समय तक हुई पूरी एवोल्यूशन पलट जाती है यानी रिवर्स हो जाती है। इस तरह पृथ्वी पर  जीवन  को  फिर से फर्स्ट स्टेज  से शुरूआत  करनी पड़ी।


आखरी extinction पृथ्वी से एक बड़ा meteor टकराने के कारण हुआ था। इसके टकराने के फोर्स से कई  भयंकर सुनामी  आई थीं। इस समय  इतनी धूल उड़ी थी कि कई सालों तक सूरज  की रोशनी ब्लॉक हो गई थी। Meteor की गर्मी से दुनिया में हर तरफ आग लग गई थी। जो जानवर आग में जलकर नहीं मरे, वह आग से निकली कार्बन डाइऑक्साइड से मर गए थे।


इसी बड़े  extinction की वजह से  डायनासोर्स की प्रजाति ख़त्म हो गई थी। उसके बाद से, 66 मिलीयन सालों से नेचर जीवन  को दोबारा बनाने का काम कर रही है। एक तरीके से, हम इस आखिरी बड़े extinction के प्रोडक्ट हैं।


इंसान 2 मिलियन साल पहले इवॉल्व  होना शुरू हुए थे यानी उसका विकास शुरू हुआ। इसमें सबसे खास या चौंकाने वाला फीचर था ब्रेन का तेज़ी से ग्रो करना। जैसे-जैसे हमारा ब्रेन बढ़ा हमारी इंटेलिजेंस यानी बुद्धि  भी बढ़ी। इससे हमारे एवोल्यूशन में बदलाव आया जिसके कारण इंसानों की प्रजाति  यूनिक बनी। इसके कारण अलग-अलग  कल्चर का डेवलपमेंट हुआ।


कल्चर का मतलब होता  है अपने ही प्रजाति के जीव को information pass करना या देना। इसे आमतौर पर सिखाकर या ऑब्जर्व करके पाया जाता है। चिंपैंजी और डॉल्फिन, जैसे कुछ ही जीव हैं जिनमें कल्चर होता है, लेकिन इनमें से कोई भी हमारे जितना कॉन्प्लेक्स जीव  नहीं है।


कल्चर से एवोल्यूशन में तेज़ी  आती है, क्योंकि हम टेक्निक्स को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में pass करते जाते  हैं। दूसरे जीवों  को मौसम  के हिसाब से ढलना पड़ता है, लेकिन हम आग जलाकर ठंड से बच सकते हैं। हम अगली पीढ़ी में इम्पोर्टेन्ट qualities genes के बजाय कल्चर के जरिए pass करते हैं।


कल्चर के साथ साथ, ये हमारी  खुशकिस्मती है कि  हम बहुत ही स्टेबल ज्योग्राफिकल पीरियड में रह रहे हैं। हम अभी Holocene epoch में रह रहे हैं, जो 11,650 साल पहले शुरू हुआ था। पिछले 10,000 सालों में, ग्लोबल टेंपरेचर कभी भी 1 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ा या घटा नहीं है।


Holocene की स्टेबिलिटी कई जीवों के कॉन्ट्रिब्यूशन के कारण मुमकिन हुई है। Phytoplankton और पेड़ों ने atmosphere में ऑक्सीजन और कार्बन के बैलेंस को मैनेज किया है। जानवरों के बड़े-बड़े झुंडों ने घास वाली ज़मीन को कंट्रोल और फर्टिलाइज़ किया है। Mangrove और कोरल रीफ्स ने समुद्र में कॉम्प्लेक्स इकोसिस्टम को बनाया और मेंटेन किया है।


Holocene एनवायरनमेंट में कई  जंगली जानवर भी हैं जिन्होंने खासतौर पर इंसानों की मदद की है। गेहूं और बार्ली जैसी फसल, उगने वाली जगह के आकार के मुकाबले, काफी ज्यादा न्यूट्रिशस हैं। भेड़ और बकरी जैसे जानवरों  ने हमें मीट और दूध दिया और वह न्यूट्रिशन दिया जो हमें पेड़ पौधों से नहीं मिल सकते।


हर पीढ़ी के साथ इंसान के एवोल्यूशन की तेजी बढ़ती गई। लेकिन ऐसा सिर्फ Holocene epoch के स्टेबल एनवायरनमेंट के कारण मुमकिन हुआ था। यह स्टेबिलिटी पृथ्वी में अलग-अलग जीवों  के कारण बनी हुई है।

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