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BOUNCE- The Science of Success Book in Hindi

BOUNCE- The Science of Success



Matthew Syed

इंट्रोडक्शन

 मोज़ार्ट  और टाइगर वुड्स को चाइल्ड प्रोडीजी भी कहा जाता है. लोग सोचते है कि ये दोनों एक्स्ट्राऑर्डिनरी जीनियस है जो कमाल का टेलेंट लेकर दुनिया में आए है. लेकिन हर कोई ये नहीं  जानता कि  मोज़ार्ट  और टाइगर वुड्स दोनों को उनके पिता  बचपन से ट्रेन करते आ रहे थे. उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उनके पिता  ने भी कम कुर्बानियां  नहीं दी हैं. जब तक दोनों टीनएजर हुए तब तक वो 10,000 घंटे प्रैक्टिस कर चुके थे और उनकी कामयाबी के पीछे यही सबसे बड़ा कारण है.  


जॉनथन  एडवर्ड्स ट्रिपल जम्प में वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर थे. वो एक कट्टर क्रिस्चियन थे जो अपने बैग में हमेशा सार्डाइन मछली का एक कैन रखा करते थे जो उन्हें बाइबल में  उनकी फेवरेट लाइन की याद दिलाता था. अपने हर गेम के साथ  वो भगवान्  का मैसेज दुनिया तक पहुँचाना चाहते थे. लेकिन उनका भरोसा तब टूटा जब वो स्पोर्ट्स से रिटायर हुए. अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उनका भगवान से  भरोसा ही उठ गया.  


हाइडी क्राइगर (Heidi Krieger) ईस्ट जर्मनी की एक शॉट पुटर थी. कम्यूनिस्ट गवर्नमेंट रूल के वक्त सारे एथलीट्स को ये बोलकर कि ये विटामिन है, ब्लू रंग की गोलियां दी गई थी. हाइडी उस वक्त टीनएजर थी लेकिन इस दवाई  को लेने के बाद उनकी मसल्स अचानक तेज़ी से बढने लगी. उनका चेहरा और नाक एकदम बड़े-बड़े दिखने लगे. अचानक से वो एग्रेसिव हो गई थी और हर वक्त डिप्रेस्ड रहा करती थी. हाइडी को हर रोज़ 6 ब्लू गोलियां दी जाती थीं. बाद में उन्हें  पता चला कि उन्हें  steroid  दिया जा रहा है तब जाकर उन्होंने डिसाइड किया कि वो अपना सेक्स चेंज करवाकर लड़का बनेंगी.   


ऐसी ही कुछ और कहानियाँ  है जो आप इस समरी  में जानोगे. आप सीखोगे कि खूब  प्रैक्टिस करना और खुद पर भरोसा करना हमारे लिए क्यों इम्पोर्टेंट है. इसके अलावा आप और  भी कई  इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में जानोगे.  


The Hidden Logic of Success

मैथ्यू सैयद 24 साल की उम्र में ही इंग्लैण्ड के नंबर वन टेबल टेनिस प्लेयर बन गए थे. उन्होंने इंटरनेशनल कॉम्पटीशन ज्वाइन किए और कई स्कूल में उन्हें स्पीच देने के लिए गेस्ट के तौर पर इनवाईट किया गया.    


ब्रिटिश पब्लिक टेबल टेनिस को लेकर दीवानी है. ब्रिटेन में 2 मिलियन के ऊपर प्लेयर्स है और हजारों टीम है, लेकिन इसके बावजूद मैथ्यू बाकियों से अलग पहचान बनाने में क्यों कामयाब रहे? उनमें  ऐसी क्या ख़ास बात थी? दरअसल उनकी स्पीड, फुर्ती और रिफ्लेक्स कमाल के थे पर सबसे बढ़कर उनके अंदर मेंटल ताकत थी.      


मैथ्यू साउथ वेस्ट इंग्लैण्ड के एक आम शहर के एक आम से परिवार में पैदा हुए थे.  उन्हें बचपन में कोई स्पेशल फेसिलिटी  नहीं मिली थी और ना ही उनके पास कोई एक्स्ट्राऑर्डिनरी  स्किल थी.  


      

लेकिन उनकी सक्सेस स्टोरी हमें इंडीविजुएलिटी के साथ-साथ पर्सनल जीत और मुश्किलों का सामना करना भी सिखाती है.  


हम ऐसे ही सक्सेस स्टोरीज़ शेयर करते है चाहे वो स्पोर्ट्स की फील्ड से हो या किसी और फील्ड से. हम ऐसी सोसाईटी में रहते है जहाँ इंडीविजुलिज्म को सेलिब्रेट किया जाता है. हॉलीवुड ऐसी कहानियों  से भरा पड़ा है जो इंस्पिरेशनल भी है और एंटरटेनिंग भी. लेकिन क्या ये कहानियाँ वाकई में सच है? 


मैथ्यू की कहानी  जो हमने ऊपर शेयर की थी उसमें कुछ डिटेल्स मिसिंग है. यहाँ उसका रियल वर्ज़न है. सच तो ये है कि मैथ्यू को आगे बढ़ने और अपना टेलेंट दिखाने के कुछ मौके मिले थे. 


सबसे पहली बात, मैथ्यू जब 7 साल के थे तो उनके पेरेंट्स ने उन्हें टूर्नामेंट साइज़ की एक टेबल टेनिस टेबल खरीद कर दी. उनका गैराज इतना बड़ा था कि टेबल इसमें फिट हो सकती थी. उनके शहर में कई बच्चों  के घर में ऐसी फुल साइज़ टेबल थी.   


दूसरी चीज़, मैथ्यू के एक बड़े भाई थे जिनका नाम था एंड्रयू. एंड्रयू भी टेबल टेनिस के शौकीन थे. वो रोज़ स्कूल से आने के बाद घंटो टेबल टेनिस की  प्रैक्टिस  किया करते थे.  ना जाने कितने घंटे  प्रैक्टिस  में ही गुज़र जाते  थे और उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहता था.   


तीसरी बात, मैथ्यू के एक टीचर थे जो उनके कोच भी थे. उनका नाम था पीटर चार्टर्स. वो यूके के टॉप कोच माने जाते थे. अपने स्कूल में स्पोर्ट्स-रिलेटेड एक्टिविटीज़ हैंडल करने के अलावा मिस्टर चार्टर्स ऐसे स्टूडेंट्स की तलाश में रहते थे जिनके अंदर टेबल टेनिस की पोटेंशियल हो. मैथ्यू जब 9 साल के थे तो मिस्टर चार्टर्स ने मैथ्यू और उनके बड़े भाई को क्लब ज्वाइन करने के लिए इनवाईट किया.       


    

अब चुनिए चौथी बात, ओमेगा एक टेबल टेनिस क्लब था. ये कोई हाई-फाई टेनिस टेबल क्लब  नहीं था. इसके अंदर सिर्फ एक टेबल थी पर सारे मेंबर्स को एक-एक चाबी दी गई थी ताकि जब जिसको जरूरत हो वो   प्रैक्टिस  कर सके. मैथ्यू और उनके भाई  स्कूल से पहले और बाद में, वीकेंड्स पर  और छुट्टियों में इसी क्लब में  प्रैक्टिस  किया करते थे. 


इन सारी इम्पोर्टेंट डिटेल्स के बेस पर हमें  ये पता चलता है कि मैथ्यू स्पेशल  नहीं थे, बस उन्हें कुछ एडवांटेज मिली थी जो हर बच्चे को  नहीं मिलती. अगर बाकि बच्चों  को भी ऐसे प्रोफेशनल इक्विपमेंट्स प्रोवाइड किए  जाते जैसे कि टॉप कोच, 24 घंटे का क्लब और  प्रैक्टिस  के लिए पार्टनर तो मैथ्यू शायद ही इंग्लैण्ड के नंबर वन प्लेयर बन पाते.        


    

लोगों  को लगता है कि  टॉप performers अपने  नैचुरल टैलेंट और हार्ड वर्क की वजह से ही नंबर 1 बन पाते है लेकिन सच तो ये है कि उन्हें कुछ ऐसे मौके मिल जाते है जिनका वो भरपूर फायदा उठाते है. जैसे example के लिए मोज़ार्ट  और टाइगर वुड्स  को ऐसे पिता  मिले थे जो उनके करियर को लेकर बेहद डेडीकेटेड और पैशनेट थे और उन्होंने उन्हें छोटी उम्र से ही ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था. अपने मिड टीन्स तक आते-आते मोज़ार्ट और वुड्स  की 10,000 घंटे की  प्रैक्टिस पूरी  हो चुकी थी.          


एंडर्स एरिक्सन फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी में एक साइकोलोजिस्ट थे. 1991 में उन्होंने वेस्ट बर्लिन की एक फेमस म्यूजिक एकेडमी में कुछ वायलिन बजाने वालों  का इंटरव्यू लिया. इन लोगों  को 3  ग्रुप में बाँटा गया था. पहला ग्रुप टॉप स्टूडेंट्स का था, जो फ्यूचर में इंटरनेशनल लेवल के आर्टिस्ट  बनने वाले थे.    


दूसरे ग्रुप में भी अच्छे स्टूडेंट्स थे पर उतने अच्छे  नहीं जितने कि पहले  ग्रुप में थे. ये लोग आगे चलकर वर्ल्ड के टॉप ऑर्केस्ट्रा ज्वाइन करने वाले थे. लास्ट में तीसरा  ग्रुप उन स्टूडेंट्स का था जो एकदम एवरेज थे. उनसे म्यूजिक टीचर्स बनने के अलावा और कुछ उम्मीद  नहीं की जा सकती थी.  


इस इंटरव्यू के बाद एरिक्सन को ये बात पता चली कि स्टूडेंट्स के अंदर कुछ एक जैसे गुण है. उन सब में  ये बात कॉमन थी कि वो 8 साल की उम्र से ही  प्रैक्टिस  कर रहे थे. ये उनकी फॉर्मल ट्रेनिंग की शुरुवात थी. इन स्टूडेंट्स में सिर्फ एक ही क्लियर फ़र्क था कि वो कितने घंटे  प्रैक्टिस करते थे.   


20 साल की उम्र में ही टॉप स्टूडेंट्स एवरेज में 10,000 घंटे की  प्रैक्टिस  कर चुके थे. दूसरे  ग्रुप के स्टूडेंट्स   ने 8000 घंटे की  प्रैक्टिस  की थी जबकि तीसरे  ग्रुप ने करीब 4000 घंटे  प्रैक्टिस  की थी.     


दूसरे  एक्सपर्ट्स ने भी यही बात साबित की थी. बात चाहे स्पोर्ट्स की हो या म्यूजिक, साइंस, आर्ट या फिर किसी और फील्ड की, आपको वर्ल्ड क्लास बनने के लिए 10,000 घंटे की  प्रैक्टिस  तो करनी  ही होगी. इसके अलावा कोई और शोर्ट कट है ही नहीं.    


हम जब कोई नया स्किल सीखते है तो अक्सर हम जल्दी हार मान  जाते है ये कहते हुए कि “मुझ में ये टैलेंट है ही नहीं.” हम इसलिए वर्ल्ड क्लास  नहीं बन  पाते क्योंकि हमने सिर्फ कुछ ही घंटों  की  प्रैक्टिस  की होती है. लेकिन अगर हम और  प्रैक्टिस  करते रहे और साथ में एक्स्ट्राऑर्डिनरी मौकों की तलाश करते रहे जैसे कि बेस्ट कोच या प्रॉपर इक्विपमेंट्स तो हम वर्ल्ड क्लास प्रोफेशनल बन सकते है. 

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