The Selfish Gene
Richard Dawkins
Introduction
क्या आपको कभी यह अजीब लगा है कि पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए कितना ज्यादा सैक्रिफाइस करते हैं? शायद नहीं, क्योंकि इंसानों और सभी जानवरों से यह उम्मीद की जाती है। लेकिन बायोलॉजिस्ट्स के लिए यह बहुत ही मुश्किल पजल है। चार्ल्स डार्विन इवोल्यूशन की थ्योरी कहती है कि सक्सेसफुल स्पीशीज सेल्फिश होते हैं। फिर भी सेलफिशनेस जानवरों की दुनिया में हर जगह पाई जाती है।
Richard Dawkins के अनुसार जीवों की सभी हरकतों को जीन्स के सेल्फिश बिहेवियर के द्वारा एक्सप्लेन किया जा सकता है। जीव जो भी करते हैं वह उनके जीन्स के लिए अच्छा होता है। यहां तक जब जीव खुद को नुकसान पहुंचाते नजर आते हैं वह भी उनके जीन्स के फायदे के लिए होता है। हम जीन्स के ओरिजिन और वह हममें कैसे इवॉल्व हुए, के बारे में सीखेंगे।
देखने में लगता है कि हम जीन्स को पास डाउन करने की मशीन के अलावा और कुछ भी नहीं है। लेकिन इस समरी के आखिर तक Dawkins जीन्स के एक कंपीटीटर को इंट्रोड्यूस करेंगे, जो है मीम्स। यह वो मीम्स नहीं है जो हम सोशल मीडिया में देखते हैं। 1976 में जब Dawkins ने यह शब्द बनाया तो यह कल्चर के सब्जेक्ट से जुड़ा हुआ था। मीम्स यह साबित करता है कि एक इंसान के रूप में हम हमारे अंदर वह पोटेंशियल है कि हम अपनी बायोलॉजी से बाहर निकल के कुछ स्पेशल बन सकते हैं।
Why Are People?
किस पॉइंट में एक लाइफ “इन्टेलिजन्ट लाइफ” बनती है? आमतौर पर यह तब होता है जब वो अपने होने का कारण समझ जाते हैं। तीन मिलियन साल तक लाइफ अर्थ में बिना यह जानें रही कि वो यहां आई कैसे। लेकिन यह 1859 में बदल गया जब चार्ल्स डार्विन ने एवोल्यूशन का पता लगाया।
लेकिन आज 150 साल बाद भी लोग एवोल्यूशन को पूरी तरीके से नहीं समझ पाए हैं। बहुतों का मानना है कि एवोल्यूशन का मकसद स्पीशीज को बचाना है। सच्चाई यह है कि एवोल्यूशन जीन्स के सर्वाइवल के बारे में है। एक जीन को सर्वाइव करने के लिए खास करैक्टेरिस्टिक्स की जरूरत होती है। और उनमें से सबसे ज्यादा जरूरी है सेलफिशनेस।
लेकिन सभी इंसान या जानवर सेल्फिश नहीं होते। सेलफिशनेस का अपोजिट होता है अल्ट्रूइज़म। इस समरी में, एक जीव अल्ट्रूइज़म है अगर वह अपने सर्वाइवल से पहले दूसरों की सर्वाइवल को प्रमोट करत है। हम इसकी जांच करेंगे कि कैसे अल्ट्रूइज़म के सभी ऐक्ट असल में सेल्फिश होते हैं। जब एक जीव खुद को सैक्रफाइस करते हुए भी दिखता है, वो ऐसा अपने जीन्स को बचाने के लिए कर रहा होता है।
अल्ट्रूइज़म का एक बहुत अच्छा एग्जांपल चिड़ियों के झुंड में पाया जा सकता है। वह शिकारियों पर निगरानी रखने के लिए किसी एक खास चिड़िया को चुनते हैं अगर एक चिड़िया एक शिकारी को देखती है तो वह बाकी सभी को अलर्ट करने के लिए जोर जोर से चिल्लाती है। लेकिन इससे शिकारी का ध्यान उस चिड़िया पर चला जाता है। उस पूरे झुंड की सेफ्टी की कीमत उसे एक चिड़िया से चुकाई जाती है।
इस तरह की सिचुएशन देख कर लोग यह सोचते हैं कि जानवर अपनी स्पीशीज कि भलाई के लिए अल्ट्रूइस्टिकली काम करते हैं। वह इसे Darwinism के जरिए समझाते हैं, डार्विन के अनुसार एवोल्यूशन सबसे फीट स्पीशीज को सर्वाइव करने की इजाजत देती है। एक स्पीशीज तब स्ट्रांग होती है जब उसके मेंबर्स एक दूसरे के लिए सैक्रिफाइस करने के लिए तैयार होते हैं।
इस थ्योरी को गलत साबित करने का एक आसान तरीका है। अल्ट्रूइस्टिक स्पीशीज में भी सेल्फिश होंगे। जो कुछ सेल्फिश हैं वह बाकी सभी अल्ट्रूइस्टिक्स का फायदा उठाएंगे। इसलिए वह ज्यादा सेफ रहेंगे, ज्यादा अच्छा खाना खाएंगे और उनके रीप्रोड्यूस करने के चांसेस भी ज्यादा होंगे। अल्ट्रूइस्टिक के मुकाबले सेलफिश के बच्चे ज्यादा होंगे। इसलिए आगे आने वाली पीढ़ियां लगातार और ज्यादा सेल्फिश होती जाएंगी।
अल्ट्रूइस्टिक थ्योरी शायद इसलिए इतनी ज्यादा पॉपुलर है क्योंकि यह इंसानों को मोरली अच्छी लगती है। हम अपनी रोज की जिंदगी में सेल्फिश हैं लेकिन हम अल्ट्रूइस्टिक लोगों की इज्जत करते हैं और उन्हें ऐडमायर करते हैं। इसका एक सबसे अच्छा एग्जांपल वॉर है। हम सोल्जर्स को इसलिए ऐडमायर करते हैं क्योंकि वह देश को बचाने के लिए अपनी जिंदगी को सैक्रिफाइस करने को तैयार होते हैं।
लेकिन वॉर के एग्जांपल से एक इंटरेस्टिंग प्रॉब्लम सामने आती है। वॉर असल में इंसान के एक ग्रुप का इंसान के दूसरे ग्रुप को मारना है। इस तरह के दो ग्रुप के बीच में प्रॉब्लम को दूसरे जानवरों में भी देखा जा सकता है। वॉर स्पीशीज के लिए ज्यादा अच्छी नहीं है। एक स्पीशीज कैसे फिट रहेगी जब उसके मेंबर एक दूसरे को मारने में बिजी होंगे?
पिछले कुछ सालों में इंसानों ने वॉर के खिलाफ मोरल डेवलप कर लिया है। इंसानों को अलग-अलग देशों की जगह एक ग्रुप के रूप में देखना चाहते हैं। यह जानवरों को बेमतलब का स्पीशीज के हिसाब से अलग-अलग बांटने से जुड़ा हुआ है।
शेर और खरगोश दोनों ही मैमल्स हैं। तो क्या मैमिलियन ऑर्डर को बचाने के लिए शेर को खरगोश को खाना बंद कर देना चाहिए? ऐसा क्यों है कि सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट रूल सिर्फ स्पीशीज पर अप्लाई होता है? आखिरकार हर स्पीशीज को आगे चलकर सबस्पीशीज में बांटा जा सकता है। क्या एवोल्यूशन को सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट सबस्पीशीज के रूप में डिफाइन करना ज्यादा सही नहीं है?
इस हिसाब से एवोल्यूशन को समझने का एक ज्यादा साफ रास्ता है। हमें सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट का रूल जितना हो सके उतना छोटे लेवल में अप्लाई करना चाहिए। यह जीव के सबसे छोटे क्लासिफिकेशन को रिफर करता है। इसलिए एवोल्यूशन का मतलब सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट जीन्स होना चाहिए।