Bechne Ka Sabse Alag Tareeka Book

Bechne Ka Sabse Alag Tareeka

How to Sell Without Selling (Hindi)
आपके बिज़नेस को एक नया और अनोखा दृष्टिकोण देने वाली बुक।

Amazon Logo Flipkart Logo

THINKING IN BETS BOOK IN HINDI

THINKING IN BETS- Making Smarter Decisions When You Don't Have All the Facts

Annie Duke

इंट्रोडक्शन


हमारी  ज़िंदगी   फ़ैसले लेने पर मजबूर किए जाने का कभी ना खत्म होने वाला  सफर है। आप किस से शादी करेंगे या आप कौन सा करियर चुनेंगे, जैसे  फ़ैसले आपकी  ज़िंदगी  को हमेशा के लिए बदल देते हैं। क्या आपने कभी इस तरह के  फ़ैसले लेने के लिए स्ट्रगल किया है? क्या आपको कभी लगा है कि आप  फ़ैसला लेने के लिए तैयार नहीं है या आपके पास जो जानकारी है वह  काफ़ी नहीं है? 


 ज़िंदगी  में हर  फ़ैसला सीधा सीधा नहीं होता।  ज़िंदगी  झूठ और रहस्यों से भरी हुई है। कई बार लोग किस तरह बिहेव करते हैं उस हिसाब से आपको जानकारी इकट्ठा करनी पड़ती है। कई बार दूसरों को कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए आपको बेवकूफी भरी चीजें करनी पड़ती है। कई बार आपको एक जॉब पाने के लिए अपनी qualification को बढ़ाकर बताना पड़ता है।


 ज़िंदगी  की यह सारी खूबियां ताश के एक गेम  से मिलती-जुलती हैं, जिसका नाम है पोकर। पोकर प्लेयर्स कम जानकारी के साथ  फ़ैसले लेते हैं और उसमें बड़ी मात्रा में पैसे का दांव लगाते हैं। उनके पास जो कार्ड्स होते हैं उनसे बड़े कार्ड्स होने का दिखावा करते हैं, ताकि वह अपने अपोनेंट्स को इतना डरा सकें कि वह गेम छोड़ दें। 


इसलिए पोकर प्लेयर्स ऐसे  फ़ैसले लेने की स्किल्स डेवलप करते हैं जो असली  ज़िंदगी  में बहुत  ज़्यादा काम की  होती हैं। 2004 के पोकर वर्ल्ड सीरीज में एनी ड्यूक जीतीं थीं  और पोकर की हिस्ट्री में सबसे सक्सेसफुल औरत बन गईं। यह समरी उनके  फ़ैसले लेने के तरीके को सिखाती है। इस समरी के ज़रिए  आप एक वर्ल्ड क्लास पोकर प्लेयर की तरह जानकारियों को इकट्ठा करना, प्रोसेस करना और इस्तेमाल करना सीखेंगे। 

 

Life is Poker, Not Chess

गेम एक साइंस है जो इंसान के  फ़ैसले लेने के बिहेवियर को स्टडी करता है। जॉन वॉन न्यूमैन को फादर ऑफ़  गेम थ्योरी माना जाता है। एक बार जॉन के एक कलीग में उनसे पूछा कि वह किस तरह के गेम को स्टडी करते हैं। उनके कलीग को लगा कि शायद वह chess की तरह बहुत ही  ज़्यादा थियोरेटिकल गेम से जुड़े हुए हैं।


जॉन ने  जवाब दिया कि chess  सच में एक गेम नहीं है, वो कंप्यूटेशन है। Chess के हर एक पोजीशन का एक सही सलूशन है। गेम थ्योरी असली  ज़िंदगी  को स्टडी करती है और असली   ज़िंदगी chess  की तरह नहीं होती। असली   ज़िंदगी  झूठ, धोखा और अनसर्टेंटी से भरी होती है। Chess में किस्मत का कोई काम नहीं होता और ना ही इसमें कोई छुपी हुई जानकारी होती है, लेकिन असली   ज़िंदगी  लगभग किस्मत और छुपी हुई जानकारी से ही कंट्रोल होती है। 


 ज़िंदगी  पोकर की तरह है जो एक कार्ड गेम है, जिसे आमतौर पर गैम्बलर यानी  जुआरी खेलते हैं। पोकर में आपके पास जो कार्ड्स होते हैं उनके जरिए आपको थोड़ी जानकारी मिलती है और आपके अपोनेंट्स कैसे खेल रहे हैं उससे भी थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है। लेकिन आपका डेटा कभी भी पूरा नहीं होता क्योंकि आप उनके कार्ड्स नहीं देख सकते।


खराब किस्मत के कारण पोकर का सबसे अच्छा प्लेयर भी उस इंसान से हार सकता है जिसने पोकर अभी-अभी खेलना शुरू किया हो। लेकिन एक क्लब लेवल का  chess  प्लेयर किसी  नए chess  खेलने वाले शख्स  को हमेशा ही हराएगा। पोकर की तरह किस्मत का असर असली   ज़िंदगी  में भी  बहुत  ताकतवर होता है। हो सकता है कि  आप नशे की हालत में गाड़ी चलाएं, रोड के सभी नियमों को तोड़ें लेकिन फिर भी सेफली घर पहुंच जाएं।  यह भी मुमकिन है कि आप सेफली गाड़ी चलाएं, पूरे नियमों का पालन करें और फिर भी आपकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाए।


किसी भी गेम में इंप्रूव करने के लिए हमें अपनी गलतियों से सीखना होता है। Chess जैसे गेम्स में हमारी गलतियां साफ नजर आती हैं। लेकिन पोकर जैसे गेम्स में हमें अपनी गलतियां पहचानने में मुश्किल होती है और यही  ज़िंदगी  के साथ भी होता है। आप अपने फैसलों की quality  का पता लगाने के लिए किस्मत और अनसर्टेंटी जैसी चीजों को कैसे दूर करेंगे?


अपने फैसलों को एनालाइज़ करने का प्रोसेस  काफ़ी मुश्किल है और उसमें  काफ़ी समय लगता है इसलिए लोग एक बिहेवियर दिखाते हैं जिसे ‘रिजल्टिंग’ कहा जाता है। रिजल्टिंग का मतलब है जब आप अपने फैसलों की quality का पता रिजल्ट के हिसाब से लगाते हैं। जैसे अपने सबसे खराब  फ़ैसले के बारे में सोचिए। उस  फ़ैसले के कारण जो गलत हुआ आप उसे देखते हुए उसे एक  गलत  फ़ैसला कहते हैं।


Example के लिए एक कंपनी को लीजिए जहां सीईओ ने सेल्स और मार्केटिंग के हेड को काम से निकाल दिया है। सीईओ को लगा कि यह उनका अब तक का सबसे गलत  फ़ैसला है। जब से मार्केटिंग हेड को काम से निकाला गया था  तब से कंपनी के सेल्स लगातार गिर रहे थे। उन्हें अब तक उस पोजीशन के लिए उससे बेहतर इंसान नहीं मिल पाया था, जो उसकी जगह ले सके।


लेकिन फिर एक कंसलटेंट ने सीईओ को अपने  फ़ैसले को एनालाइज़ करने के लिए कहा। सीईओ ने अपनी कंपनी के परफॉरमेंस को अपने कंपीटीटर्स के परफॉरमेंस  से कंपेयर किया। उन्होंने नोटिस किया कि उनके कंपीटीटर्स उनसे कहीं  ज़्यादा अच्छा परफॉर्म कर रहे थे। सीईओ ने मार्केटिंग हेड के साथ काम करने के लिए एक कोच को हायर किया। उस कोच ने यह पता लगाया कि उनकी लीडरशिप स्किल्स कमज़ोर है।


कोचिंग काम नहीं आई। मार्केटिंग हेड के परफॉरमेंस में कोई भी इंप्रूवमेंट नहीं हुआ। उस  टेक कंपनी का पास्ट में हाई लेवल के  स्टाफ को रिप्लेस करने का एक्सपीरियंस अच्छा रहा है इसलिए सीइओ ने बोर्ड के साथ बातचीत की और मार्केटिंग हेड को काम से निकाल दिया। अब आप  ख़ुद से पूछिए कि क्या सीईओ का  फ़ैसला गलत था?


कंपनी ने जो प्रोसेस फॉलो किया वह अच्छा और लॉजिकल था लेकिन सीईओ को उनका  फ़ैसला गलत इसलिए लगा क्योंकि उसका रिजल्ट खराब था। एक इंसान के रूप में हम ज़िंदगी  में भी इसी तरह की चीजें करते हैं। हम हमारे  फ़ैसले लेने के प्रोसेस को खराब रिजल्ट  के कारण गलत मान लेते हैं लेकिन कई बार अच्छे  फ़ैसले भी फेल हो जाते हैं। यह  ज़िंदगी  का एक फैक्ट है।


मान लीजिए कोई सिक्के को 4 बार उछलता है। चारों बार  हेड्स आने का कितना चांस है? सिंपल मैथ्स  कहता है इसका चांस लगभग ½*½*½*½*100 = 6.25% है। क्या सच में ऐसा ही है? क्या हमें पता है कि सिक्के के दोनों तरफ का वज़न एक जैसा है? हो सकता है कि जो इंसान उस सिक्के को उछाल रहा है उसमें इतनी स्किल है कि वह हर बार सिक्के को उस तरफ गिराए जैसा वह चाहता है।


लोग चीजों के बारे में स्योर होना पसंद करते हैं। उन्हें ऐसे  फ़ैसले लेना पसंद है जो उन्हें पता है कि सही हैं। हमें बचपन से सिखाया जाता है कि किसी  चीज़ के बारे में स्योर ना होना बुरा है। लेकिन  ज़िंदगी  में सर्टिनिटी बहुत ही कम होती  है। हमें सक्सेस के सबसे ज़्यादा  चांस वाले  फ़ैसले लेने के लिए मजबूर किया जाता  है। कोई भी  फ़ैसला सक्सेस की गारंटी नहीं देता।


सबसे अच्छे  फ़ैसले लेने वाले वह होते हैं जो सब कुछ ना जानते हुए भी कंफर्टेबल होते हैं। सबसे अमीर इन्वेस्टर्स अपने ज्यादातर इन्वेस्टमेंट्स में पैसे खोते हैं लेकिन वह अपने  फ़ैसले लेने के प्रोसेस पर शक नहीं करते। धीरे-धीरे उन्हें अच्छे रिजल्ट्स मिलने लगते  हैं। उन्हें उनके अच्छे quality  के फैसलों के कारण  उनके नुकसान से  ज़्यादा का प्रॉफिट मिलता है। 


एक ऐसी दुनिया इमेजिन कीजिए जहां लोग सिर्फ वही  फ़ैसले लेते हैं  जिनके नतीजे पक्के  तौर पर अच्छे होते हैं। तब कोई भी कंपनी नहीं होगी क्योंकि ज्यादातर स्टार्टअप्स फेल हो जाते हैं। वहां कोई कोर्ट केस भी नहीं होगा  क्योंकि लॉयर्स यह तय नहीं कर पाएँगे कि वह केस जीतेंगे या नहीं। फिर भी सबसे अच्छे entrepreneurs और लॉयर्स स्ट्रेटेजीज बनाते हैं। उन्हें पता है कि बिना किसी रिस्क के सक्सेस नहीं पाई जा सकती है। 

एक टिप्पणी भेजें