THINK STRAIGHT - Change Your Thoughts, Change Your Life
Darius Foroux
इंट्रोडक्शन
1860 में एक नौजवान हावर्ड से मेडिसिन की डिग्री पूरी करता है. इसी दौरान वो अपनी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से भी जूझ रहा होता है. हालाँकि वो मेडिसिन पढ़ रहा था लेकिन खुद उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं थी. वो डिप्रेशन का शिकार था और अक्सर उसके मन में आत्महत्या करने के विचार आते थे.
इस नौजवान का नाम था विलियन जेम्स जो आगे चलकर अमेरिका के बेस्ट साइकोलोजिस्ट हुए और उन्होंने फिलोसोफ़ी के एक स्कूल जिसे प्रैग्मैटिस्म कहा जाता है, उसकी फाउंडेशन रखने का क्रेडिट भी जेम्स को जाता है. जेम्स तीन साल तक डिप्रेशन के शिकार रहे, इस दौरान वो अपना ज़्यादातर समय यही सोचते रहते थे कि उन्हें आत्महत्या क्यों नहीं करनी चाहिए. इस समय उन्हें पैनिक अटैक आते थे और hallucination या जो नहीं है उसके होने का एहसास होना, होते थे. दरअसल जेम्स को ये बीमारी विरासत में मिली थी क्योंकि उनके पिता को भी डिप्रेशन था और उन्हें भी आत्महत्या करने के विचार आते थे इसलिए जेम्स को लगता था कि उनकी मेंटल कंडीशन बायोलॉजिकल है जिसका कोई ईलाज नहीं है. लेकिन 1870 में उन्होंने इस बारे में एक अलग नज़रिए से सोचना शुरू किया.
जेम्स ने एक फिलोसफर का लिखा हुआ essay पढ़ा. उसमें समझाया गया था कि जब इंसान को एक साथ कई थॉट्स आए तो उसके पास free विल की चॉइस होती है यानी किसी एक थॉट पर फोकस करना. इस essay को पढने के बाद जेम्स को ख्याल आया कि वो इस डेफिनेशन को अपने hallucination पर अप्लाई करके देखेंगे. इससे जेम्स को ये पता चला कि अगर इंसान चाहे तो वो एक थॉट के बदले में कोई दूसरा थॉट चूज़ कर सकता है. इसका मतलब हुआ कि हम अपने थॉट्स को कंट्रोल कर सकते है. बाद में यही आईडिया प्रैग्मैटिस्म का कोर बना जिसकी फाउंडेशन उन्होंने कई सालों बाद राखी थी.
हालाँकि जेम्स समझते थे कि हम अपने कांशसनेस को कंट्रोल नहीं कर सकते. हमारे माइंड में कई थॉट्स आते-जाते है लेकिन फ्री विल की वजह से आप चूज़ कर सकते हो कि किस थॉट पर फोकस करना है. यानि इंसान अगर प्रैक्टिस करता रहे तो वो खुद डिसाइड कर सकता है कि उसे क्या सोचना चाहिए और क्या नहीं . अपने थॉट्स पर कंट्रोल रखना लाइफ में बहुत इम्पोर्टेंट है. ये आपको लाइफ के हर फील्ड में सक्सेसफुल बनने में हेल्प करता है, चाहे वो करियर हो, फाईनेन्स, रिलेशनशिप हो या कोई और मैटर हो.
इतिहास के कई थिंकर्स इस बात से सहमत है. जैसा कि फिलोसफर राल्फ वॉल्डो एमर्सन कहते है “हम वही बनते है जो हम हर वक्त सोचते रहते है”. आपके एक्श्न आपके थॉट्स की देन है. अगर आपको अपने एक्श्न चेंज करने है तो सबसे पहले अपने थॉट्स को चेंज करो और इस समरी में आप अपने थॉट्स को कंट्रोल करने के बारे में और भी काफी कुछ सीखेंगे.
Use What Works
आपका ब्रेन दुनिया का सबसे पावरफुल टूल है. ये किसी भी टेक्नोलॉजी या डिवाइस से ज्यादा कॉम्प्लेक्स और ज्यादा चमत्कारी है. लेकिन एक प्रॉब्लम है. हम इंसान एक अमेजिंग ब्रेन के साथ पैदा होते है पर हमें ये पता नहीं होता कि इसे ठीक से और पूरी तरह यूज़ कैसे करना है. हम लोग बहुत impractical भी हैं. हमें लगता है कि हम ग्रेट थिंकर्स है और लॉजिकल तरह से डिसीजन लेते है. लेकिन रिसर्च इसे गलत प्रूव करती है. पिछली कई शताब्दीयों में साइंटिस्ट्स को 100 से भी ज्यादा cognitive bias या थिंकिंग error के बारे में पता चला है. वो बताते है कि कैसे हम बिना फैक्ट्स के बारे में सोचे बिना अपने ईमोश्न्स और गट फीलिंग के बेसिस पर डिसीजन लेते है.
इस बुक के ऑथर डेरियस फोरॉक्स ने cognitive bias पर कई बुक्स पढ़ चुके है. उनमें ऐसी कहानियों या घटनाओं के बारे में लिखा गया है जब लोग सोचने में गलतियां करते हैं.
डेरियस हमारे सोचने के तरीके को बदलने और उसे सही करने में हमारी मदद करना चाहते है और इसलिए उन्होंने ये बुक लिखी है. पहले डेरियस भी आप जैसे ही थे. उन्हें अपने थॉट्स पर कंट्रोल पाने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. जैसे कि वो आज खुश है तो कल बेवजह उदास हो जाते थे. यहाँ तक कि उनसे डेली लाइफ की सिंपल प्रॉब्लम भी सोल्व नहीं हो पाती थी. लेकिन उन्होंने प्रैक्टिस, रीडिंग, जर्नलिंग और सोचने की मदद से अपनी थिंकिंग को इम्प्रूव करना सीख लिया था.
अब डेरियस अपने माइंड के गुलाम नहीं है. वो अपने थॉट्स को खुद पर हावी होने नहीं देते बल्कि उन्हें कंट्रोल करना उन्हें आता है. वो स्ट्रेट यानी सीधा सोच सकते है. स्ट्रेट सोचने का ये मतलब नहीं है कि आप कितने इंटेलिजेंट है या मैथ्स के प्रॉब्लम को सोल्व करने में कितने अच्छे है बल्कि इसका मतलब है अपने थॉट्स को सक्सेसफुली कंट्रोल कर पाना. ऐसा करके आप एक खुशहाल, हेल्दी और मीनिंगफुल लाइफ जी सकते है. आपको काम के और फ़िज़ूल के थॉट्स के बीच फर्क पता होना चाहिए. किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले शांत रहकर, फैक्ट्स को स्टडी करो और चीजों को अलग नज़रिए से देखने की कोशिश करो तब जाकर किसी नतीजे पर पहुँचो.