इंट्रोडक्शन
न्यू ईयर पर रेजोल्यूशन सब लेते है. हर कोई नए साल की शुरुवात में कुछ ना कुछ प्रॉमिस करता है. जैसे कुछ लोग सोचते है कि वो डाईट करेंगे और कुछ लोग स्मोकिंग और ड्रिंकिंग छोड़ने का फैसला करते है जबकि कुछ लोग अपनी बुरी आदतें छोड़ने की कोशिश करते है.
लेकिन फिर होता क्या है? कुछ दिनों तक तो हम अपना रेजोल्यूशन फॉलो करते है लेकिन फिर वही अपनी पुरानी आदतें अपना लेते है. या यूं कहे कि अपनी पुरानी आदतें हम छोड़ ही नहीं पाते है.
और फिर अगर कोई पूछे कि आपने अपना न्यू ईयर रेजोल्यूशन कम्प्लीट क्यों नहीं किया तो आप जवाब देते हो कि “बस मुझसे हो नहीं पाया” क्योंकि आपके अंदर खुद को चेज़ करने की विलपावर ही नहीं है.
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. हम ये नहीं बोल सकते कि मुझसे नहीं हो पाया. किसी काम में सक्सेसफुल होने ना होने के लिए हम विल पावर का बहाना नहीं बना सकते.
आप इस समरी में उन स्ट्रेटेज़ीज़ के बारे में जानोगे जो हमें सक्सेसफुल होने के लिए चाहिए. आप समझोगे कि अपने एनवायरनमेंट को चेंज करना ही सक्सेस का सीक्रेट है. आप जानोगे कि लाइफ में छोटे-छोटे changes भी बड़ा इम्पैक्ट डाल सकते है.
तो क्या आप तैयार है अपना बेस्ट सेल्फ बनने के लिए?
How Your Environment Shapes You
12th सेंचुरी के दौरान साइकोलोजिस्ट्स का फोकस इंसान के बिहेवियर पर होता था. साइकोलोजिस्ट दावा करते है कि किसी इंसान के गोल्स और उसका माइंडसेट ही ये तय करते हैं कि उसके बिहेवियर में क्या-क्या चेंजेस आ सकते है. ये उन दिनों एक कॉमन नॉलेज बन गई थी
मान लो कोई इंसान डेली एक पैकेट सिगरेट पीने की अपनी हैबिट छोड़ना चाहता है तो इस थ्योरी के हिसाब से वो इंसान अगर अपना माइंडसेट चेंज करेगा तो उसकी स्मोकिंग की हैबिट छूट जाएगी. उसे समझ आ जाएगा कि स्मोकिंग हेल्थ के लिए हानिकारक होता है और अगर वो स्मोकिंग नहीं छोड़ेगा तो जल्दी मर भी सकता है.
लेकिन बाद में ये थ्योरी उतनी ज्यादा एक्सेप्ट नहीं की गई. अपना माइंडसेट या गोल्स चेंज करने का मतलब ये नहीं है कि आपका बिहेवियर भी चेंज हो जाएगा. एक स्मोकर का अपनी स्मोकिंग को लेकर माइंडसेट चेंज करना ज्यादा दिन नहीं चलेगा क्योंकि फाईनली उससे रहा नहीं जाएगा और वो वापस स्मोकिंग करने लगेगा.
क्या आप जानते है कि इसका कारण क्या है? कारण ये है कि उसका एनवायरनमेंट यानी माहौल उसे स्मोकिंग छोड़ने नहीं दे रहा है. पहली बात तो ये कि वो बचपन से अपने पेरेंट्स को स्मोकिंग करते हुए देख रहा है और जब वो बड़ा होकर जॉब करता है तो उसे कलीग्स भी ऐसे मिलते है जो स्मोक करते है और उनके साथ वो सिगरेट ब्रेक्स में जाने लगता है.
अगर आपके चारों तरफ आपके मन को ललचाने वाला माहौल हो तो बुरी आदत छोड़ना और भी मुश्किल हो जाता है. इंसान शुरू में खुद को सिगरेट जलाने से रोक भी ले पर आखिरकार उसकी विल पावर और खुद को कण्ट्रोल करने की एबिलिटी काफी लिमिटेड होती है और लास्ट में वो ख़ुद को रोक नहीं पाएगा.
अगर आप चेंज लाना चाहते है तो आपको पहले अपना माहौल चेंज करना होगा, इसमें आपके आसपास के लोग और सोसाईटी भी शामिल है.
अब वापस उस स्मोकिंग हैबिट वाले इंसान पर आते है. अगर वो उस वक्त पैदा होता जब स्मोकिंग हर जगह अलाउड थी तब शायद वो फ्री होकर कहीं भी स्मोकिंग कर लेता लेकिन स्मोकिंग के रूल्स अब स्ट्रिक्ट हो गए है. इसलिए उसे अब स्मोकिंग करने के लिए ऐसी ख़ास जगह ढूंढनी होगी जो खासतौर पर स्मोक करने के लिए बनाए गए है. आप जहां चाहे वहां स्मोकिंग नहीं कर सकते क्योंकि ये आपके साथ-साथ दूसरों को भी नुक्सान पहुँचाता है.
स्मोकर्स का माहौल उन्हें काफी हद तक स्मोक करने के लिए उकसा सकता है. आपको जगह-जगह कई स्मोकिंग स्पॉट्स मिल जाएंगे. उस इंसान के फ्रेंड्स और फेमिली मेंबर्स भी अगर स्मोक करते होंगे तो उसे आसानी से सिगरेट मिल जाएगी.
एक और फैक्टर जिसके बारे में हमें सोचना चाहिए, वो है genes. सिगरेट में निकोटिन होता है जो काफी एडिक्टिव केमिकल है यानी इसकी लत लग जाती है. सब्सटेंस एब्यूज की वजह से भी इंसान स्मोक कर सकता है क्योंकि ये एडिक्शन उसे विरासत में मिली है. मगर निराश होने की जरूरत नहीं है, एपिजेनेटिक्स की फील्ड में इसका भी ईलाज है.
एपिजेनेटिक्स का मतलब है किसी इंसान के डीएनए को स्टडी करना. इस फील्ड के हिसाब से genes किसी इंसान की किस्मत डिसाइड नहीं करते. आपको शायद सब्सटेंस एब्यूज आपके पेरेंट्स से मिला हो लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप भी एडिक्ट बन जाएँगे. आपकी बायोलोजी ये तय नहीं करती है कि आप कौन हो.